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सबकम्मो नाम । एतरूपं कृत्वा प्रजापतिः प्रजा असुजत यत्सुजता कगेन् नादकगेभाणाकृष्यः कणो वै कूर्मस्तस्मादाहुः सर्वाः प्रजाः काश्यप्य इति-श-का-७ अ० ५ ब्रा०-१ -५ ___भावार्थः-( स यकूर्मो नाम ) जो कूर्म नाम से वेदों में प्रसिद्ध है सो (एतद्वै रूपं कृत्वा प्रजापतिः) एतन् अर्थात् कूम्म रूप को धारण करके प्रजापति परमश्वर । प्रज असृजन । प्रजा को उत्पन्न करत हुए । ताद करोत् ) वे प्रज़ पति, जिसमे सम्पूण जगत् को उत्पन्न करते भये (तस्मात्कूमः ) तिमी से कूम्म कहे गये हैं (कश्यपो वै कूर्मः) -निश्चय करके वही दूम कश्यप नाम से कहे गये हैं (तस्मान् ) तिसी से (आहुः) सम्पूर्ण ऋषि लोक कहते हैं कि (सर्वाः प्रजाः काश्यप्यइति) सम्भूण प्रजा कश्यप की हा है। तथा कितनेछ कहते हैं कि, यह सर्व जगत् मनु का रचा है
'तथाहि शतपथ ब्राह्मणे मनवे ह वै प्रातः अबनेग्यमुदकमाजहूर्य थेदं पाणिस्यापवने जनाया हन्ति एवं तस्या बने निजानस्य मत्स्यः पाणी आपेदे ॥१॥
भावार्थ-मनु जी के प्रति प्रातःकाल में भृत्यगण ( नोकर ) हस्त धोने को और तपरण के लि", जल का आहरण करते भये, तब मनुजीने जैसे इतर लोक वैदिककर्म निष्ठ पुरुष इम अवनेग्य जलको तपंण करने के लिये अपने दोनों हाथों करक ग्रहण कर है. इसी प्रकार तर्पण करते हुए मनुजीके हाथमें मछल का बच्चा भास्य अकस्मात् भागया, तब उसको देख कर मनु मी सोचने