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ऋग्वेद के समय में यह रुद्र श्रमिका विशेषण मात्र था । पुनः यह अमिका परिवर्तित रूपमें प्रकट हुआ, और यजुर्वेद के समय में वैदिक कवियों, अमें, वायु, भाख, आत्या, सथा उत्तर दिशाका राजा आदि गुस्तोंको आरोपित करके इस रुद्रको एक नये देवता का रूप प्रदान कर दिया ।
पुनः पुराणकारोंने इसको और भी भयानक रूप दे दिया । यही प्रजापति विष्णु आदि वैदिक देवोंकी व्यवस्था है ।
ऐतिहासिक राजा रुद्र
जैसा कि - ऊपर लिखा जा चुका है, ब्राह्मण प्रन्थों में रुद्रकी उत्तर दिशा बताई गई है।
इससे प्रतीत होता है कि यह उत्तर दिशाका एक राजा था । वे लोग चोरी. डाका आदिका ही कार्य करते थे संभवत: इसी लिये वेदों में इसको चोर, डाकुआं अदिका अधिपति कहा है।
नपो वंचते परिचचते स्तायूनां पतये नमः ।
यजुर्वेद० १६ । २२
यजुर्वेदका यह पूरा अध्याय ही रुद्रकी खुतिमें लिखा गया है. इसीलिये इस अध्यायका नाम ही रुद्राध्याय है। इसमें स्पष्टरूप से रुद्र (महादेव) को चोर, व ढाकु आदियोंका अधिपति बताया है। पं सातवलेकरजीने 'महाभारतकी समालोचना' में इसके ऐतिहासिक रूप पर अच्छा प्रकाश डाला है. अतः हम उसको अक्षरशः यहाँ उद्धृत करते हैं। आप लिखते हैं कि
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भूतनाथ
"महादेव के नामों में भूतनाथ, भूतेश, भूतपति आदि नाम