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न कभी हुआ और न कभी होगा यह निश्चित सिद्धान्त है। तथा वेंदोंमें ही सृष्टि उत्पत्ति आदिका विरोध पाया जाता है, यथा 'ध्र वाग्यौ यह धुजाक पृथिवी लोक आदि सब नित्य हैं तथा च 'कोददर्श प्रथमं जायमानम्' इस जगतको उत्पन्न होते हुये किसने देखा है । तथा महाभाष्यमै भो सिद्धाद्यी' श्रादि कहकर पृथिवी
आदि सत्र लोकोको नित्य माना है । तथा सिद्ध शब्दको नित्य का पर्यायवाची कहा है। . . श्री पांडेय रामावतार शर्मा
"पृथिवी स्वर्ग और नरक के उपर्युक्त विचारोंके रहते भी संहितामें सृष्टि परक स्पष्ट विवरण नहीं मिलते। इस सम्बन्धके जो कुछ कथन रूपकोंमें कथित हैं, उनके शाब्दिक अर्थों से निश्चित अभिप्राय आज निकालना कठिन है । मन्त्रोंमें पिता माताके द्वारा सृजनके सदृश्य उल्लेख हैं। और जिन देवताओंसे विश्वका धारण किया जाना अर्णित है उनकी भी उत्पत्ति के संकेत दिये गये हैं। पुरुष. हिरवगर्भ, प्रजापति, उत्तानपाद मादि सूकोंमें जो बिखरी राये हैं उनमें सृष्टि विषयक अस्फुट बातें हैं । जिनको आधार बना कर ब्राह्मणकालमें प्रथिवीके बनने के सम्बन्ध में बराह, कच्छप, आदिके आख्यान उपन्यस्त किये गये।" (भारतीय ईश्वरवाद)
श्री स्वा० विवेकानन्द जी "यह संसार किसी विशेष दिनको नहीं रचा गया। एक ईश्वर ने श्राकर इस जगतकी सृष्टि की, इसके बाद वह सो रहे यह कभी नहीं हो सकता।" पृ० "तथा च हम देख चुके हैं कि इम सृष्टिको बनाने वाला व्यक्तिगत ईश्वर सिद्ध नहीं किया जा सकता है। आज कोई बच्चा भी क्या ऐसे ईयरमें विश्वाल करेगा ? एक कुम्हार घड़ा बनाता है. इसलिये परमेश्वर भी यह संसार