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इस शरीर में जो शिर है वहीं चमस (पाश्र्वत् ) है (अर्वागबिल) इसका सुखरूप बिल (छिद्र) नीचे है। मूल ऊपर है। इसे शिरोरुप चमस पात्र में प्रारूप सम्पूर्ण यश स्थापित है। इसके तट पर प्राण रूप सात ऋषि हैं। और अष्टमी वाणी वेद (महाआत्मा ) से सम्बाद करती हुई विद्यमान है। आगे इन सातोंके नाम भी कहते हैं। दोनों कर्ण गौतम, भरद्वाज । दोनों चतु विश्वामित्र जमदग्नि । दोनों नासिकाएँ वसिष्ठ, कश्यप ।
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वाणी = अत्रि |
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प्राण ही ऋषि हैं
अतव त्राह्मण ग्रन्थों में
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" प्राणा चैं ऋषयः " शत० ६ । १ " प्राणा व ऋषयः " इस प्रकारका पाठ बहुत आता है ।
प्राणा उ वा ऋषयः ॥ ४॥ प्राणा वै बालखिल्याः ॥ ८ ॥
इत्यादि शतपथादि ब्राह्मणों में देखिये ।
शत पथवा० के श्रष्टुम काण्डके आरम्भ में ही लिखा है । "प्राणो भौवाथनः । प्राणो वै वसिष्ठऋषिः । ६ । मनो ये भरद्वाजः । चजुर्वेजमदग्नि ऋषिः । वागू वै विश्वकर्माऋषिः
इत्यादि अनेक प्रमाणसे सिद्ध होता है कि बेदोंमें जो वसिष्ठ आदि पद आए हैं वे प्राणांके अथवा प्राण विशिष्ठ जीवात्मा के नाम हैं।
प्राण ही सप्त शीर्षण्य प्राण हैं सप्त वें शीर्षन् प्राणाः । ऐतरेय || ३ || ३ ||