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"सप्त शीर्षण्याः प्राणाः" ऐसा पाठ ब्राह्मग्गों में बहुत प्राता है दो चनु, दो कर्ण, दो नासिकार और एक वाग ये ही सप्त शीर्पण्य प्राण हैं।
प्राण ही भूभुवादि सप्त लोक हैं प्राणायाम के समयमें
"ओं भूः श्रों भुवः यो स्वः ओं महः ओं जनः ओं तपः ओं सत्यम्"
यह मन्त्र पढ़ते हैं।
प्राण + आयाम - प्राणों के अवरोध करनेका नाम प्राणायाम है भू आदि प्राणों के नाम हैं।
१४-चतुर्दश लोकोंका जो वर्णन है वह प्राणोका ही वर्णन है। ये ही सात प्राण-दो चक्षु, दो कर्ण, दो नासिकाएँ और वाग ऊपर के लोक है, + और दो हाथ दो पैर एक भूत्रेन्द्रिग्र मलेन्द्रिय
और एक उदर ये सात नीचेके सात लोक । अतल. वितल, सुतल, महातल, रसातल और पाताल नामसे पुकारे जाते हैं।
प्राण ही ४६ वाय हैं महाभारतादिकों में गाथा है कि कश्यपकी स्त्री दितिको जब गर्भ रहा तब "इन्द्र यह जान कर कि इससे उत्पन्न बालक मेरा घातक होगा" दितिक बदर में प्रविष्ट हो गर्भस्थ बालकको प्रथम ७ सात खण्ड कर पुनः एक शकको सात २ वएड कर बाहर निकल आया। दिति ने इसके साहसको देख अपने ४६ पुत्रों को इन्द्र के साथ कर दिया तब ही से वे मरुत् वा मारुत् कहाते हैं और इन्द्र के सदा साथ रहते हैं। माव यह है कि:- दिति नाम व्यष्टि शरीर