________________
। ३७६ । यह भी कहा है, कि देवानां पूर्व युगऽसतः समजायत" ऋ०१० ७२.७ )-देवताओं से भी पहल असन से अधीन अव्यक्त से 'मन' अर्थान व्यक्तमृष्टि उत्पन्न हुई। इसके अतिरिक्त किसी न किसी एक दृग् तत्व से मनि की उत्पग्नि के विषय में ऋग्वन हीमें भिन्न भिन्न अनेक वर्णन पाये जाते हैं, जैसे सृष्टि के प्रारम्भ में मूल हिरण्यगर्भ था अमृन और मृत्यु दोनों उसकी ही छाया है,
और आगे श्सी से ना मृष्ट्र निर्मित हुई है (०२०/२.९।१.२. पहले विराट रूपी पुरुष था और उमसे यज्ञ के द्वारा मारी मुष्टि हुई (ऋ. १६) पहले पानी (आप) था, उसमें प्रजापति उत्पन्न हुश्रा(ऋ. १७२।६।१८८६) ऋत और सत्य पहले उत्पन्न हुए फिर रात्रि (अन्धकार) और जमके बाद समुद्र (पानी), संवत्सर इत्यादि उत्पन्न हुप ( ऋ० १... १६४, ५) । ऋग्वेदमें वर्णित इन्हीं मूल द्रव्योंका आगे अन्यान्य स्थानों में इस प्रकार उल्लेग्न किया गया है. जैसे:--(१) जलका नेत्तीय ब्राह्मण में
'आपो वा इदमग्रे सलिलमासीत' यह सब पहले पतला पानी था (ले० प्राः । १ । ३ । ५) : (.) असनका. तैत्तरीय उपनिषद में
'असद्वा इदमग्र आसीत्' यह पहल असन था (ते. २ । ७) ; (३) सतका छांदोग्य में
'सदेव सौम्येदमन आमीन' यह सब पहले सत् ही था (छां । २) अथवा (४) श्राकाश का
'आकाशः परायणम् ५---आकाश ही सबका मूल है (छो १ | ह); (५) मृत्युका ) धृहदारण्य में