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धात इस सूक्तमें कड़ी गई है. यही तत्व सृष्टिका प्रलय होने पर भी निःसन्देह शेष रहेगा । अतएव गोतामें इसो परमका कुछ पर्णय से इस प्रकार वणन है. कि "सच पदार्थोंका नाश होने पर भी जिमका नाश नहीं होता" (गो० ८ । २) और आगे इसा सून के अनुसार सष्ट कहा है कि वह मन भी नहीं है" (गीता .३५ १२ परन्तु प्रश्न यह है , कि मष्तिो गुलाम में गिगा ना के सिया और कुछ भी न था, तो फिर वेदोंमें जो ऐसे वर्णन पाये जाते हैं कि आरंभमें पानी, अंधकार या प्राभु और तुच्छ की जोड़ी थी" उनको क्या व्यवस्था होगी ? अतएव तीसरी ऋचा में कविने कहा है. कि इस प्रकारके जिनने वएन ई जने कि सुधि के श्रारम्भमें अन्धकार था या अन्धकारसे अच्छदिन पानी था या बाभु (अस) और उसको आच्छादित करने वाली माया (तुच्छ) ये दोनों पहले थे इत्यादि-वे सब उस समयके हैं जाक अकेले एक मूल परब्रह्म के तप-महात्म्यसे उसका विविध रूप से फैलाव हो गया था--ये घणन मलारम्भके नहीं है. इस ऋचा 'तप' शब्दसे मूल ब्रह्मको ज्ञान मय मिल ज्ञण शक्ति विवक्षित है
और उसीका वरणन चौयों ऋचा में किया गया है (मु०११)देखा 'एतावान् अस्य महिमाऽतोज्यायश्चि पूरुषः (ऋ०१०१8०1३)
इस न्यायसे सारी सृष्टि ही जिमकी महिमा कहलाई. उस मूल इन्यके विषयों कहना न पड़ेगा कि वह इन सबके परे सबसे श्रेष्ठ
और भिन्न है दृश्य वस्तु और दृष्टा भाक्त भोग्य परंतु आच्छादन करनेवाला और अच्छच अंधकार और प्रकाश मर्त्य और अमर इत्यादि मांग द्वैतांको इस प्रकार अलगकर यच प यह निश्चय किया गया कि केवल एक निर्मल चिद्रपबिल जण प ब्रह्म हा मूनारंभमें था तथापि जब यह बतलानेका समय शाया कि हम निर्वच्य निगुण अकेले एक तत्वसे आकाश जल इत्यादि बंद त्मक किनाशी