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हैं जिनमें जगत की उत्पत्ति का स्पष्ट शद्रों में बाप्रबल युक्तियों से खंडन किया है। यथा--
ध्रुवा एवं बः पितरी युगे युगे नेम का मासा सद सो न . .गुज्यने । ००१०१४१२ . .
- अर्थ---तुम्हारे पूर्वज पर्वन युगयुगास्तरोंसे स्थिर है, पूर्णाभि- : लावं हैं, और किसी भी कारण से अपना स्थान नहीं छोड़ने । वे अज्ञः अमर है और हरे वृक्षों में युक्त है। .
इस प्रकार जब वेदोंसे इस जगतका नित्यत्व सिद्ध हो गया तो उनके ऋर्ताका प्रश्न हो शेष नहीं रहना ।
मीमांसा और ईश्वर यदा समिदं नासीन कास्था. तत्र गम्यताम् । प्रजापतेः क वा स्थानं कि रूपं च प्रतीयताम् ।।४।। नाता च कस्तदा तर यो जनांन बोधयिष्यति । उपलब्धेरिना चतत् कथमध्यवमायताम् ।। ४६ ॥ . प्रवृतिः कथमायां च जगतः से प्रतीयते । शरीगदेविना चाध्यकथमिच्छापि सर्जने ॥४॥ शरीराद्यतस्यम्यातम्योत्पत्तिने तस्कृता । तद्धन्य प्रसंगोऽपि नित्यं यदित्तदिष्यते ॥४॥
प्राणिनां प्रायो दुःखाच सिमृक्षाऽस्य न युज्यते ॥४६॥ : अभावाचोनु कम्प्यानां नानु कम्पास्य जायते ।
सृजे शुभमेवेक मनुकम्पा प्रयोजितः ॥ ५२ ।। .. माधन. चारूप धागद तथा किचन त्रिवाते । चच निस्माधनः कर्मा ऋश्चिास जति किंच न ५०