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धमका। क्या उसका अपना कोई स्त्रार्थ था । यदि कहो कि उसका स्वार्थ तो कुछ भी नहीं था, तो बिना प्रयोजनके वह इतना बड़ा क्यों करता है। मूर्ख स े मूर्ख भी बिना प्रयोजनके किसी काममें प्रवृत्त नहीं होता है। यदि कहो कि यह उसकी को अ लीला है, तो इस लीला अथवा खेलसरे संसार तंग आ चुका है। अब वह कब तक बालक बना रहेगा । और कब तक एसी ही कौड़ा करता रहेगा। अच्छा आप विश्व रचनाके बारे में कुछ उत्तर नहीं दे सकते तो यही बता दो कि वह प्रलय क्यों करता है । क्या । वह काम करता करता थक जाता है अतः तक आराम करने लगता है, अथवा उसके साधन खराब हो जाते हैं उनको ठीक करने लगता है । यदि कहो कि यह भी उसकी दयाका फल है । तो आपको दया के पारिभाषिक कुछ अन्य अर्थ करने पड़ेगे । क्यों कि अब तो दयाका अर्थ संरक्षण हो समझा जाता है. संसार नहीं । तथा च--बनाना और बिगाड़ना दो परस्पर विरुद्ध बातें हैं दोनोंका एक दया प्रयोजन नहीं हो सकता श्रतः ईश्वर जगतका सहार क्यों करता है इसका आज तक कोई विद्वान उत्तर नहीं दे सका है। यदि कहो कि जगत बनाने में मेद प्रमाण हैं तो यह कहो कि वे कथित पदार्थोका वेदके साथ संबन्ध है या नहीं। यदि कहो कि सम्बन्ध नहीं है तब तो वेद असत्य भाषण दोषी हैं। यदि कहो कि हैं, तो वेदोंके नित्य होनेसे उन २ पदार्थोंकी नित्यता स्वयं सिद्ध हो गई. अतः जगत रचनाकी कल्पना युक्ति और प्रमाण से खंडित होनेके कारण मिथ्या है। तथा च वेद बनाने वाले ने अपनी प्रशंसा प्रगट करनेके लिये उन वाक्योंको नहीं लिखा इसमें क्या प्रमाण है । तथा च मीमांसा दर्शनके भाष्यकार श्रीमत्पार्थं सारथि मिश्र, अ ५ पाद. १ अधिकरण ५ की व्याख्या करते हुये लिखते हैं कि
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