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बायुक अश्विनी देवोंका है। अश्वनीदेव प्राण रूपसे नासिका स्थान में रहते हैं। प्राण-अपान, श्वास उच्छवास, दांयें और बायें नाकका श्वास, यह अश्वनी देवीका प्राणमय रूप शरीरमें है। इस शरीर रूपी रथके इन्द्रिय रूप घोड़ोंको चला रहा है।
देवताओंकी अनुकूलता जो ब्रह्मचारी देवताओं का निरीक्षण और ग्रहण करता है, उस में अ'श रूप से निवास करने वाले देवता जनके साथ अनुकूल वन कर रहते हैं। मत्र कहता है कि--"तस्मिन् देवाः स-मनसो भवन्ति ।" अर्थात उस प्रमचारी में सब देव अनुकूा मनके साथ रहते हैं. इसके शरीर में मिन देताओं के है, तब इस ब्रह्मचारीके मन के अनुकूल अपना मन बना कर उसके शरीर में निवास करते हैं। अपने शरीर में देवताओंका निवास निम्न प्रकार से होता है । देखिये. . १---अग्निर्वाग्भूत्वा मुखं प्राविशद ।
२---बापुः प्राणो भूत्वा नासिके प्राविशत् । ३.-आदित्यश्चनुर्भूत्वाऽक्षिणी प्राविशत् । ४-दिशा श्रोत्रं भूत्वा की प्राविशन् । ५---औषधिवनस्पतयो लोमानि भूत्वा स्वयं प्राविशन् । ६--चन्द्रमा मनो भूत्वा हृदयं प्राविशत् । ७-मृत्युरपानो भूत्वा नाभि प्राविशत् । - ८-आपोरेतो भूत्वा शिश्न-प्राविशन् ॥ (ए०३०२।४) १-- अग्निवक्तृत्वका इंद्रिय बन कर मुखमें प्रविष्ट हुआ (.) वायु प्राण बन कर नासिकामें संचार करने लगा (३) सूर्यने