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वायुः प्राणो मृत्वा नासिके प्राविशन (ऐ० उ०१शरा४)
'मासिका रूप इन्द्रिय खुल गये. नासिकासे प्राण और प्राण से काय हो गया।' अर्थात् आत्माको प्रवल इच्छा शक्ति श्री कि मैं सुगंधका आस्वाद लेलू । इस इच्छाशक्ति से नासिका के स्थान में दो छ, बन गये. थे ही नासिका के दो छेद है । इस प्रकार नाक बनने प्राण हुश्रा और पागले चाय बना है ! श्रात्माकी इच्छा शक्तिः कितनी प्रबल है, इसकी कल्पना यहाँ स्पष्ट हो सकती है। इस प्रकार शरीरमें छेद करने वाली शक्ति जो शरीरके अन्दर रहती है, वही श्रात्मा है, इसको इन्द्र' कहते हैं क्योंकि यह यात्मा ( इदं-द्र) इस शरीरमें सुराख करनेकी शक्ति रखता है। इसकी प्रबल इच्छा शक्तिसे विलक्षण घटनायें यहाँ सिद्ध हो रही है. इसका अनुभव अपने शरीरमें ही देखा जा सकता है । जो ऐसा समर्थ जीवात्मा है। यही प्राणका प्रेरक है. यह प्राणा, वायुका पुत्र है, क्योंकि ऊपर दिये हुए मन्त्रमें कहा है, कि वायु प्राया बनकर नासिकामें प्रविष्ट हुआ है। इसलिये वायु का यह प्रागा पुत्र है।
पुरुषस्य प्रयतो वामनसि संपद्यते, मनः प्राणे, "पागास्तेजसि, तेजः परस्यां देवताथाम् (धा० उ०६६)
“पुरुषकी वाणी मनमें, मन प्राणमें, प्राण तेज में और तेज पर देवतामें संलम होता है।" यही परंपरा है । परदेवताको तात्पर्य यहां प्रात्मा है। प्राण विद्याकी परम सिद्धि इस प्रकारसे सिद्ध होती है।
प्राण और अन्य शक्तियाँ · प्रापके श्राधीन अनेक शक्तियां हैं उनका प्राथाके साथ संबंध देखने के लिये निम्न मंत्र देखिये--