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साधु दो वृत्तियाँ है वे ही देव और असुर हैं। इन के ही महायुद्धों का नाम क्षेत्रासुर संग्राम है। प्राणायाम सत्यादिके ग्रहणसे इनके असुरत्व भावका नाश होजाता है। इसका वर्णन बृहदाण्यक में वृहत्पूर्वक है निष्पाप वाणी को अनि देव. निधाप माण. को वायुदेव,निष्पाप चक्षु को प्रादित्यदेव, निष्पाप पात्र को दिदेव और निष्पाप मनको चन्द्र देव कहते हैं। ... इन्द्रिय ही श्वान (कुत्ते हैं)
छान्दो १ । १२ में कहा है कि मुख्य प्राण श्वेत कुत्ता और वाणी, चक्ष श्रीन और मन से साधारण कुत्ते हैं। ये अन्नके लिये व्याकुल होते है।
इन्द्रिय ही अश्व (घोड़े) हैं आत्मानं रथिनं विद्धि-शरीरं रथमेव तु । बुद्धिस्तु सारिथं विद्धि-मनः अग्रह मेव च ॥ ३.
इन्द्रियाणि हयानाढविषयं स्तेषु गोचरान् । क० उ० ... यह शरीर रथ है। आत्मा रथी है । बुद्धि सारथी है। मन । लगाम है । इन्द्रिय हय (घोड़े) हैं। इनमें विषय निवास करते हैं ।
मुख्य गौण प्राण और पञ्च शब्द - पैर से शिर तक व्यापक प्राण के मुख्य, वरिष्ठ आदि नाम हैं इनके ही प्राण अपान, समान, उदान व्यान प्रादि पांचवा दश भेद हैं और वाग.मन,चक्षु. श्रोत्र ये चार गौण प्राण कहाते हैं।
तान् बरिष्ठः प्राण उवाच-वाङ्मनश्चक्षुः श्रोत्रंच ते प्रीताः प्राणास्तुवन्ति