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इनो विश्वस्य भुवनस्य गोपाः ।
समाधीरः पाकमत्राविवेश ।। ५० । ३ । १२ ।।
यहां यास्काचार्य सूर्य और जीवात्मा दोनोंका वर्णन करते हैं सूर्य पक्षमें सुपर्ण किरण | आत्मपक्ष में सुपर्ण इन्द्रिय । जीवात्म विशिष्ट प्राण ही पक्षी है।
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पुरव के द्विपदः पुरके चतुष्पदः
पुरः स पक्षी भूखा पुरः पुरुष आविशत् । वृ०/२/५/१८ इस प्राण सहित जीबात्मा के द्विपद, चतुष्पद सब ही पुर (ग्राम) हैं अतः यह पुरुष कहाता है। पक्षी ही के सर्वत्र प्रविष्ट है।
ब्रह्मा देवानां पदवीः कवीनामृषिर्विप्राणां महिषी मृगागाम् | श्येनी गृधाणां स्वधितिर्वनानां सोमः पवित्रमत्येति रेमन || नि० परि० २ । १३ ।।१
इस ऋचायें ब्रह्मा, पदवी, ऋषि महिष, श्येन, स्वधिति और सोम ये सब जीवात्मा के नाम और देव, कवि विप्र, मृग, गृध, वन ये सब इन्द्रियोंके नाम हैं। ऐसा यास्काचार्य कहते हैं ।
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हंसः शुचिपद् वसुरन्तरिक्षसद् होता वेदिषदतिथिदु रोश - सत् । तृषद् वरसदृतसद् व्योमसद्व्जा गोजा ऋतजा अद्रिजा ऋतम् । निरुक्क ।
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यहाँ हंस आदि प्राण सहित जीवात्मा के नाम कहे गये हैं प्राण ही सप्त ऋषि हैं
सप्त ऋषयः प्रतिहिताः शरीरे ।
सप्त रचन्ति सद् मप्रमादम् ॥