SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३४३ ) इनो विश्वस्य भुवनस्य गोपाः । समाधीरः पाकमत्राविवेश ।। ५० । ३ । १२ ।। यहां यास्काचार्य सूर्य और जीवात्मा दोनोंका वर्णन करते हैं सूर्य पक्षमें सुपर्ण किरण | आत्मपक्ष में सुपर्ण इन्द्रिय । जीवात्म विशिष्ट प्राण ही पक्षी है। = पुरव के द्विपदः पुरके चतुष्पदः पुरः स पक्षी भूखा पुरः पुरुष आविशत् । वृ०/२/५/१८ इस प्राण सहित जीबात्मा के द्विपद, चतुष्पद सब ही पुर (ग्राम) हैं अतः यह पुरुष कहाता है। पक्षी ही के सर्वत्र प्रविष्ट है। ब्रह्मा देवानां पदवीः कवीनामृषिर्विप्राणां महिषी मृगागाम् | श्येनी गृधाणां स्वधितिर्वनानां सोमः पवित्रमत्येति रेमन || नि० परि० २ । १३ ।।१ इस ऋचायें ब्रह्मा, पदवी, ऋषि महिष, श्येन, स्वधिति और सोम ये सब जीवात्मा के नाम और देव, कवि विप्र, मृग, गृध, वन ये सब इन्द्रियोंके नाम हैं। ऐसा यास्काचार्य कहते हैं । L हंसः शुचिपद् वसुरन्तरिक्षसद् होता वेदिषदतिथिदु रोश - सत् । तृषद् वरसदृतसद् व्योमसद्व्जा गोजा ऋतजा अद्रिजा ऋतम् । निरुक्क । I यहाँ हंस आदि प्राण सहित जीवात्मा के नाम कहे गये हैं प्राण ही सप्त ऋषि हैं सप्त ऋषयः प्रतिहिताः शरीरे । सप्त रचन्ति सद् मप्रमादम् ॥
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy