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________________ सप्तापः स्वपतो लोकमीयुः। तत्र जागृती अस्वधनों सत्रसदा च देवा।। नि००६।३७ यहाँ भी दोनों पक्षों में घटाते हैं। सूर्य रूप शरीर में सात फिरणा ही सप्त ऋषि हैं । वे ही किरण प्रमाद रहित हो सम्बत्सर की रक्षा करते हैं। सूर्य के अस्त होने पर भी ये ही सात (आप:) सर्वत्र व्यापक होते हैं। सूर्य और वायु दोनों जगते रहते हैं। इत्यादि सूर्य पक्ष में (पड़े + इन्द्रियाणि + विद्या+सप्तमी) छः इन्द्रिय और सप्तमी विद्या ये सातों ऋषि हैं। ये ही शरीर की रक्षा करते हैं, सोजाने पर ये सातों यात्म रूप लोक में रहते हैं प्राज्ञ और तेजस आत्मा सदा जगते रहते हैं प्राशजीवात्मा । सेजस = प्राय यहाँ यास्क छ: इन्द्रिय कहते हैं। पञ्च ज्ञानेन्द्रिय, षष्ठ मन। तिथ्य॑म् विलचपस ऊर्चबुध्नो। यस्मिन् यशो निहितं विश्व रूपम् ।। अत्रासत ऋषयः सप्त साकम् । ये अस्य गोया महतो बभूवुः ॥ नि० दें. ६ । ३७ ॥ वहाँ भी ग्रास्क दोनों पक्ष रखते हैं। आत्म पक्ष में सम ऋषि पदसे सप्त इन्द्रिय लेते हैं। दो नयन, दो धारण, दो नासिकायें और एक जिला प्रायः ये ही सात अभिप्रेत हैं। इसकी व्याख्या शतपथ ब्राह्मणमें भी है परन्तु यहाँ पाठः इस प्रकार है। अर्वाग विलश्चमस ऊचवुघ्नः। तस्मिन् यशो निहित विश्वरूपम् ॥ तस्यां सप्त ऋषयः सप्त तीरे । वागष्टमी प्रारणा संविदाना ।।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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