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________________ ( ३४२ ) पाण महिमा इसी विषयको विशेष स्पष्ट करने के लिए हम वैदिक साहित्यमें जो प्राणोंकी महिमाका वर्णन है, उसको लिखते हैं। इस वर्णनसे पाठकोंको वैदिक अध्यात्म विद्याका भी रहस्य समझमें आजाएगा, तथा वेदाम जो सृष्टि रचना के मन्त्र प्रतीत होते हैं उनका भेद भी प्रकट हो जायगा। प्राणोंका माहात्म्यः ( वैदिक वांगमयमें )-मूर्यके जितने. अश्व, वृषभ, इस श्रादि धारापित नाम पाते हैं जीवात्मा को भी उन नामों से पुकारते हैं। सूर्यके सप्न प्रकार किरण हैं। जीवात्माके भी दो चक्षु. दो कर्ण. दो नासिकायें. एक बाणी ये सप्त किरण सम हैं। मूर्य के साथ भी कहीं प्राण और मन, कहीं प्राण. मन और वाणी, कहीं प्राण. मन, वाणी. और विज्ञान, कहीं चक्षु श्रोत्र. मन वागी. कहीं पंचेन्द्रिय षष्ठ मन इत्यादि समानता है। जैसे मूग्यके लोक, अन्तरिक्ष और पृधित्री तीन लोक हैं। तइन् जावात्माक परस कति पर्यन्त एक पृधियी लोक. मायशरीर दूसरा अन्तरिक्षलोक, तीसरा झुलाक। अथवा एक स्थूल शरीर, दूसरा इन्द्रिय. नीसरा मन ये तीन लोक है भाव यह है कि जीवात्मा और सूर्गको अनेक प्रकारसे परम्पर उपमित करते हैं। यह जीबारमविशिष्ट जो नयन, करण, नासिका, रसमा आदिक गरम हैं। वे वहाँ प्रामा नामसे उक्त है। प्राण हो सुपर्ण (पक्षी) है। यत्रा सुपर्णा अमृतस्य भागम् । अनिमेष विदयाऽभिस्वरन्ति ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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