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अबाधन्त सुनीतन्य एक पत्नीस्तर्जयन् । अपरे जगृहुर्देवान्प्रत्यचान्तायितान् ॥ १६ ॥ श्री भागवत ४ । ५
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" कईयों ने यज्ञशाला के बांस तोड़ दिये पत्नीशालाका भवन किया, समास्थान. आमशाला और पाकशालाका नाश कईयों ने किया. कईयांने यज्ञपात्र तोड़े, दूसरांने अभियोको बुझाया यज्ञकुंडों में कईगोंने मूत्र किया, बेदी मेखता कईयोंने तोड़ दिये, ऋषि मुनियोंको कई गोते धसकाया पोखियों का अपमान भी कईयों ने किया. अन्याने देवाको पकड़ कर खूब ठोक दिया । इम बलमें देवोंको भी खूब चोटें लगी कई देवोंके दान टूट गये कई बड़ी जखमें होगई, कई आंख फट गये इसका
वन भी देखिये
जीantaraarasयं प्रपद्येताऽक्षिणी भगः । भृगोः श्वश्रूणि रोहन्तु पूष्णो दन्ताश्च पूर्ववत् । ५१ ।। देवानां भगात्राणामृखिजां चायुधाश्मभिः । भक्तानुगृहीताना माशु मन्योस्त्वनातुरम् ।। ५२ ।। श्री० भागवत ४ । ६
"यजमान जी, भगके आँख ठीक हों. भृगुकी मूडियाँ ठीक
डॉ. दुषा दांत पहले जैसे हों, पत्थरोंसे फटे देवोंके साथ और
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ऋके अंग ठीक हो ।" इस वर्णन से पता लगता है कि यजमान दक्ष प्रजापति बहुत घायल हुआ था, यहां तक कि उसके जीवित रहने में भी शंका उत्पन्न हुई यो भग
देवता के आंख
गये थे. पूषा दाँत टूट गए थे, भृगुकी दाढ़ी मूछें काटी गई थी और अन्यान्य देवोंके शरीरोंपर अन्यान्य स्थानोंमें बड़े भारी भारी