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में हैं, (५) ईश्वर ही सब कुछ है। इनमें अन्तिम धारणा वैदिक
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एक इश्वरकी सार्वभौम सत्ता मानने पर, तथा ईश्वरको सर्व• ध्यापक मानने पर दूसरी सृष्टिकी सत्ता मानना कठिन है। क्योंकि एक ही स्थानमें दो वस्तुओंका रहना असंभव है। जहाँ सृष्टि है यहाँ ईश्वर नहीं नौ जहाँ ईश्वर धोया, मृति नहीं माने की ओर प्रवृत्ति होती है। संघ भृतोंमें ईश्वर है ऐसा माननेसे इसका अर्थ सब भूत खोखले हैं । अत: वहां खोखले पनमें ईश्वर रहा है ऐसा होता है।
इसी तरह ईश्वरमें सब भूत है. ऐसा कहते ही ईश्वर में ऐसा स्थान है. जहां सब भूत रह सकते हैं, ऐसा ही मानने पड़ेगा।
दो या तीन पदार्थ ईश्वर के अतिरिक्त हैं और उनके साध ईश्वर भो सर्व व्यापक है. इस कथनका तर्क भिसे कुछ भी मूल्य नहीं है । तथापि ये लोग तथा द्रुतसिद्धान्तको मानने वाले सब सम्प्रदाय ऐसा ही मानत आये हैं।
ये ईश्वर, प्रकृति और जोवको अनादि मानते हैं और वैसा मानते हुये ईश्वरको सर्वव्यापक भी मानते हैं।" पृ८९८
यहाँ मार्य समाजके मूल सिद्धान्तको ही तर्क और बेद विरुद्ध सिद्ध किया गया है।
चोर आदि सब ईश्वर हैं आगे श्राप लिखते हैं कि'घातक, चार. डाकू. लुटेरे, उगने वाले. धोखेबाज, फरेवी, मकार. कपटी, छल करने वाला. नियमीका उल्लंघन करने वाला, ___ इनमें तृतीय और चतुर्थ सिद्धान्त प्राय समाजका है, जिसको स्पष्टरूपसे अवैदिक बताया गया है ।