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प्रयोग विशेषसे अपने शस्त्रास्त्र बनाते होंगे । परशु, त्रिशूल, वारण
और पाशुपतास्त्रके उपयोग के कारण उनकी सभ्यताका दर्जा बहुत ऊँचा मानना कठिन है । क्योंकि इनके साथ साथ करुये चमड़ोंका कपड़ोंके समान उपयोग, खोपड़ीका बतनोंके समान उपयोग ड़ियोंका आभूषणोंके समान उपयोग करनेकी प्रथा भी उनका विशिष्ट दर्जा निश्चित करती है। मृत और पिशाच जातिके लोग उस समयके असम्य अवस्थाके लोग थे, यह आंत महाभारताधि प्रन्थ पढ़नेसे मी समय ध्यान में आजाती है. परन्तु महादेवादि वीर महापुरुष उनसे विशेष उच्च अवस्था पर मानना योग्य है क्योंकि इनकी मान्यता अन्य रातिस भी उस समय सबको मान्य
हुई थी।
ऋतुध्वंसी महादेवका विचार करनेके समय उसका यज्ञविध्वंसक गुण भी देखना चाहिये । "क्रतु--ध्वंशो" शब्दका अथ यशका नाश करने वाला है । महादेव यज्ञका नाशक प्रशिद्ध है । दक्षप्रजापति के यशका नाश उसने किया था । दक्षप्रजापति उसका संबंधी भी था। यज्ञका विध्वंस करनेके हेतु इस महादेवके विषयमें थोड़ी शंका उत्पन्न होती है और वह शंका रद होती है कि जिस समय हम देखते है कि महादेव सदा असुरों और राक्षसांकी सहायता करता है । बाणासुररानिकोंको महादेवकी महायता हुई थी और उमी काम देवों और श्राओंको बड़े कष्ट हुए थे । बाणासुर जैसे पासियों राक्षसों को महादेवसे महायता मिलती थी और इस कारणं वाह प्रबल होकर देवों और अायाँको सत्ताते थे। महादेषकर यह विश्वंस करनेका स्वभाव और असुरोको देधों और प्रायों के विरुद्ध प्रबल. अनानेकी राजनीति स्पष्ट सिद्ध कर रही है कि ये प्रारंभ में न तो देवोंके पक्षपाती थे और न अाकि सहायक थे 1