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एषा ( उदीची) मैं रुद्रस्य दिक् । ० १ । ७ । ८ । ६ रुद्रस्य वाहू (आर्द्रा नक्षत्रमिति सायणः ) ते ११५ | १/१ पं भगवदत्तजीने वैदिक कोषमें लिखा है कि-"तान्येतान्यष्टौ (रुद्रः सर्वः पशुपति, उग्रः, अशनि, भवः महान्देवः, ईशानः, अग्निरूपाणि कुमारोनवमः ) ( कुमार:= स्कन्दः रुद्र पुत्रोऽग्रि पुत्रः अमरकोशे )
महाभारते वनपर्वण, २२५ | १५-१६"
रुद्र:- अनि वै स देवस्तस्यैतानि नामानि शत्रु हि यथा प्राच्या अचचते भव इति यथा वाहिकाः पशूनां पतिः, रुद्राऽग्निरिति । श० १।७।३।८
अर्थात् अनिका नाम रुद्र है. तथा प्राणों का नाम रुद्र हैं. क्योंकि ये निकलते समय हलाते हैं । रुद्र. शर्व, पशुपति, उम्र, अशनि मंत्रः महादेव, ईशानः, आदि सब अभिके रूप हैं।
कुमार स्कन्द को जो किं शिवजी के पुत्र हैं उनको अभिका पुत्र लिखकर दोनोंकी एकता प्रदर्शित की है। रुद्रकी उत्तर दिशा है, तथा नक्षत्र रुद्रके हाथ हैं।
इसी अभिको पूर्व दिशा वाले 'शर्व' कहते हैं, और किसी प्रान्त वाले 'भव' और कोई इसको 'रुद्र' तो अनेक इसी श्रमिको 'पशुपति' आदि ना ते तुकारते हैं ।"
सारांश यह हैं कि ऋग्वेद, अथर्ववेद, निरुक्त, सम्पूर्ण ब्राह्मण ग्रन्थ तथा महाभारत और अमरकोश आदि सम्पूर्ण वैदिक साहित्य में अभि. शयु, प्राण व प्रण सहित संसारी श्रात्माका नाम ही कद्र है. किन्तु वर्तमान ईश्वरकी कल्पनाका संकेतमात्र भी नहीं है । तथा च---