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शब्दका अर्थ यह है कि "जिसकी सेनायें यारों ओर थोड़ी थोड़ी विभक्त हुई हैं।" चारों दिशाओं में जितने देश हैं उनमें जिसकी सेनाएँ खड़ी है। अर्थात् यह उपेन्द्र अपने स्थानमें रहत हुआ अपनी विविध सेना द्वारा संपूर्ण देशका संरक्षण करता श्री जिस प्रकार इस समय अंग्रेजों की सेनाएँ भारतवर्ष में कई स्थानों में रखी जाती हैं और उनके द्वारा सत्र देशकी रक्षाका प्रबन्ध करने की योजना की गई है. उसी प्रकार देवोंके उपाध्यक्ष उपेन्द्र महाराज अपनी विविध स्थानोंमें रखी हुई सेनाओं द्वारा भारतवर्षकी जनताकी रक्षा करते थे । उपेन्द्रको अर्थात् विष्णुको मानत्रका रक्षक माना है इसका कारण यही प्रतीत होता है। ब्रह्मदेव विष्णु और महादेव ये तीन देव त्रिदेवोंके अंदर हैं, उनमें से विष्णु ही उपेन्द्र हैं और सबकी रक्षा करने वाले हैं। ब्रह्मदेवका राष्ट्र देश ही है क्योंकि इसकी पूर्व दिशा मानी गई है। महादेवका स्थान कैलास पर्वत सुप्रसिद्ध है और इस उपेन्द्र विष्णुका स्थान किसी हिमालयकी पहाड़ा में होना संभव है, जिसका उस समयका नाम कुठलोक सुप्रसिद्ध है। इस स्थान में रहता हुआ उपेन्द्र जैसा अपना विक्रम भारत भूमि पर करता था उसीप्रकार तिब्वत में भी जाकर करता था । जिस प्रकार मुख्य राजाकी अपेक्षा उसका मुख्य सचिव विशेष राजकारण पंटु होता है अथवा होना चाहिये; उस प्रकार उपेन्द्र विष्णु देवांके इन्द्र सम्राटकी अपेक्षा बुरखाने अधिक राजनीतिज्ञ बनाया है। कमसे कम भारत'वासियोंके हिन संबंध को देखकर हम कह सकते हैं कि भारतमियोंके लिये उपेन्द्र ही अधिक सहायता करते थे और हरएक अकारले लाभकारी होते थे। इसी लिये हरएक कटिन प्रसंगम भारतवासी विगुकी ही शरण लेते थे ।