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कि विदासीदधिष्ठानमारमा मनमत रिशमशानी
यतो भूमि जनयन विश्वकर्मा वि द्यामाणोन्महिना विश्वचक्षाः ।। २ ॥
विश्वतश्चतुरुत विश्वतोमुखो विश्वतो वाहुरुत विश्व तस्पात सं वाहुरयां धम में पतावाभूमी जनयन देव एकः ॥ ३ ॥
किं स्विद्धन क उ स वृक्ष प्रास यतो द्यावापृथिवी निष्टततुः । मनीषिणो मनसा पृच्छतेदुत्तद्य दध्यतिष्ठझुवनानि धारयन ॥ ४॥
ते धामानि परमाणि यावमा या मध्यमा विश्व कर्मन्नुतेमा शिक्षा सखिभ्यो हविपिस्वातः स्वयं यजस्व तन्वं वृधानः ॥ ५॥
विश्व कर्मन् हविषा वा धृधानः स्वयं यजस्व पृथिवी मुतद्याम् । मुह्यं वन्ये अभितो जनाप्स इहास्माकं मश्वा सरिरस्तु ॥६॥ __ बाचस्पति विश्व कर्मणि मूतये मनोजु बाजे अद्या हुवेम | स नो विश्वानि हवनानि जोषद्विश्वशम्भूत्रसे साधुकर्मा || ७॥
१-हमारे पिता और होता विश्वकर्मा प्रथम सार संसारका हवन करके स्वयं भी अनिमें बैठ गये । श्नोत्रादिके द्वारा स्वर्ग-धन की कामना करते हुए वे प्रथम सारे जगतसे अनिका पाच्छादन