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( ३०६ ) "तमिदगर्भ प्रथम दध्न आपः" अथात्--जलोंने उसीको नाश्रय करके प्रश्रम गर्भ धारण किया ।"
यहां पर निरुक्तकारने अपनी पुश्रमें अन्य प्रमाण भी दिये हैं जिनसे विश्वकर्मका मध्यम स्थानीय देव (इन्द्र व वायु) होना सिद्ध होता है। तथा च यास्काचर्यने विश्वकर्मा देवला वाले मन्त्रों का अध्यात्म अर्थ भी किया है । यथा
"अथाध्यात्मम् --विश्वकर्मा विभृतमना व्याशा घाता च विधाता च परमश्च सन्दशयिता इन्द्रियाणामेषाम् इष्टानि या कान्तानि वा गतानि वा मतानि का नतानि चा अन्नेन सह मोदन्ते यत्र इमानि सप्त ऋषीणानि इन्द्रियाणि एभ्यः पर आत्मा तानि एतस्मिन एक भवन्ति इति आरम गति पाचष्टे ।"
विश्वकर्मा विपना श्राद्विहाया धाना विधाता परमोत सन्दृक् । तेषा मिष्टानिसमिषापदन्ति यत्रासप्त ऋषीन पर एकमाहुः ॥ १०८२२ निरुक्तकारने इस मन्त्रकी व्याख्यामें उपरोक्त कथन किया है।
अर्थात--"विश्वकर्मा, (विमना) विभूतमना है ।( विशाल हृदय वाला है ) तथा सर्व प्रकारसे महान है. इसलिये यह धाता, विधाता तथा इन्द्रियोंका द्रष्टा. जो कि अन्नसे मोदको प्राप्त होती हैं । इन्द्रियोंसे परे अात्मा है. उसीमें ये सब ऋषि (इन्द्रियाँ), एकीभावको प्राप्त होती है।"
ॐ नोट -निमन पर, लुगाचार्य का भाष देने ।