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। ३५३ ) यद् वाचा नभ्युदितं येन वागम्युनते ! नदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ।। १ । ४
यन्मनसा न मनुते येनाहुमनोमतम् ।।५ यच्चक्षुषा न पश्यति येन च सि पश्यति ॥ ॥६ यस्छोत्रेण न शृणोति येन श्रोत्रमिदं अंतम् । ॥'७ यत्प्राणेन न प्राणिति येन प्राणः प्रणीयते । ।। '
अर्थ---जिसका वाशी वर्णन नहीं कर सकती किन्तु जिसके द्वारा वाणी अपना कार्य करती है, उसीको मह अनो, जिन देवादिकी उपासना की जाती है वह ब्रह्म नहीं है।
मन जिसका मनन नहीं कर सकता, जिसके द्वारा मन मनन करता है...
आँखें जिसको नहीं देख सकती जिससे आँखें देखती हैं
उसीको...
जिसको कान नहीं सुन सकत जिसकी कृपासे कान सुनते हैं उसीको ''
जो प्राणके श्राश्रय नहीं है, अपितु प्राण जिसके आश्रय है उसी को...
तथा च अन्य प्रतियोंमें भी इसी श्रात्माको ब्रह्म कहाहै । यथा योवाचमन्तरोयमपति । १० ३।७११७ न हि वक्तु वक्तेविप्रलोपो विद्यते० ० ४।३।२६ तस्यभासा सवमिदं विभाति । मु० उ० २।२।१० अभिप्राय यह है कि केन उपनिषद तथा अन्य सब नियों में