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ऋषि कही थी उसकी पुष्टि निरुतकारने की है। निरुतकारने fasay शब्दका तीन धातुसे सिद्धि की है।
(१) विष. (०) विश. प्रवेशने से (३) वि. पूर्वक अश. धातु से। तीनों प्रकार के अर्थोको सूर्य परक घटित किया है। साथ ही अपनी इदं विष्णु विचक्रमे" यह प्रसिद्ध मन्त्र दिया है ।
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इस मन्त्रका अर्थ करते हुए और वामः' ऋषि कहते हैं कि" समारोहणे, विष्णुपदे गयशिरसि इति श्रामः ।"
समारोहणा - उदयगिरिमें उदय होता हुआ विष्णुदेव एक पद धरता है, मध्यान्ह कलमे विष्णुदेव नमख है. और सायंकाल में गय शिर' ( असंगिरि - अस्ताचल ) पर तीसरा पैर रखते हैं
उपरोक्त सूर्य का नाम ही विष्णु है इसमें किसी प्रकारका सन्देह नहीं रह जाता हैं। तथा च पं० शिवशंकरजी काव्यतीर्थने त्रिदेव निखय' नामक पुस्तक पुराण आदिके शतशः प्रमाणों से यह सिद्ध किया है कि श्रीराम कृष्ण आदि विष्णु के अवतारोंका जितना भी वसंत है वह सब सूर्यका ही वर्णन है ।
हमने विस्तारभयसे उन सबका यहां उल्लेख नहीं किया है। जो पाठक विस्तार से इसका अध्ययन करना चाहें वे वहां देख सकते हैं।
पं. सातबलेकरजीने 'महाभारतकी
समालोचना भाग २ में ऐतिहासिक वर्णन किया
विष्णुको उपेन्द्र मन्ना हैं तथा उसका हैं. पाठकों की जानकारी के लिये उसको हम यहाँ उद्धृत करते हैं।
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जिस प्रकार हरएक जाति वाला मनुष्य अपनी जातिकी दृष्टि