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अधिक होकर अर्थात् ब्रह्माएड से बाहर भी व्याप्त होकर अवस्थित हैं.। . ____२-जो कुछ हुआ है और जो कुछ होने वाला है, सो सब ईश्वर (पुरुप ) ही हैं। वह देवत्व के स्वामी है; क्यों कि प्राणियों के भोग्यके निमित्त अपनी कारणावस्था को छोड़ कर जगवस्था को प्राप्त करते हैं। .
३–यह सारा ब्रह्माण्ड उनकी महिमा है-यह तो स्वयं अंपनी महिमासे भी बड़े हैं । इन पुरुषका एक पाद (अश) ही यह ब्रह्माण्ड है-इन पविनाशी तीन पाट तो दिल लोक में .. ४-तीन पादों वाले पुरुष ऊपर ( दिव्य धाममें ) उठे और उनका एक पाद यहाँ रहो । अनन्तर बह भोजन-सहित और भोजन-रहित (चेतन और अचेतन ) वस्तुओंमें विविध रूपों से व्याप्त हुये।
५-उन आदि पुरुषसे विराट ( ब्रह्माण्ड-देह) उत्पन्न हुश्रा और ब्रह्माण्ड-देहका आश्रय कर के जीव-रूपसे पुरुष उत्पन्न हुए । वह देव-मनुष्यादि-रूप हुए। उन्होंने भूमि बनाई और जीवों के शरीर ( पुरः ) बनाये ।
६--जिस समय पुरुष-रूप मानस हषिसे देवों ने मानसिक यज्ञ किया, उस समय यज्ञ में बसन्त-रूप घृत हुआ ग्रीष्म-रूप काष्ठ हुन्मा और शरद् हव्य-रूपसे कल्पित हुथा। ___ -जो सबसे प्रथम उत्पन्न हुए. उन्हीं ( यश-साधक पुरुष) को यज्ञीय-पशु-रूपसे मानस यज्ञ में दिया गया। उन पुरुषके द्वार। देवों-साध्यों (प्रजापति आदि) और ऋषियोंने यन किया ।
८-जिस यज्ञमें सर्वात्मक पुरुषका हवन होता है, उस मानस