________________
( २८६ )
श्रमि मस्तक हैं, चन्द्र व सूर्य नेत्र हैं, दिशायें कान हैं, और वाणी इसकी वेद हैं।
इस आत्माका वायु प्राण है, सम्पूर्ण विश्व इसका हृदय है, उसी आत्मा के चरणोंसे पृथिवी उत्पन्न हुई. यह आत्मदेव सब प्राणियोंका अन्तरात्मा है
उसी आत्मासे सरां जिसकी समिधा है ऐसा पनि उत्पन्न हुआ. सोम (चन्द्रमा) से मेघ और संघसे पृथिवी पर औषधियाँ उत्पन्न हुई। पुरुष स्त्री (औषधिया उत्पन्न हुआ) वीर्य सींचता है. इस प्रकार आत्मा से ही यह प्रजा उत्पन्न हुई है ।
इसी आत्मासे, वेद, यज्ञ, ऋतु, दक्षिणा, संवत्सर. यजमान लोक आदि उत्पन्न हुये है ।
उसीसे देवता व साध्यगण, मनुष्य, पशु, पक्षी, प्राण, अपान यदि उत्पन्न हुये हैं ।
उसी आत्मासे. सप्तप्राण ( मस्तकस्थसात इन्द्रियाँ ) उत्पन्न हुये। आत्मा से ही उनकी सात ज्यांतियाँ सात समिधा (विषय) सप्तहोम ( विषय ज्ञान) और जिनमें वे संचार करते हैं वे सात स्थान प्रकट हुए हैं । प्रति देह में स्थापित ये सात २ पदार्थ इस जीवात्मा से ही उत्पन्न हुये हैं ।
I
इस प्रकार उपनिषदोंमें आत्माकी स्तुति की गई है। ये श्रुतियां पुरुष सूके अनुवाद स्वरूप हैं। अतः यह सिद्ध है कि पुरुष सूक्त में भी इसी श्रात्माकी स्तुति है न कि किसी कम्पनिक ईश्वरका कथन । पक्त श्रुतिका अर्थ सभी विद्वानोंने जांव परक किया है अतः यह प्रकरण जीवका है यह निर्विवाद है यथा-