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(२८१ ) यज्ञसे दधि मिश्रित घृत श्रादि उत्पन्न हुए। उससे वायु देयत्ता वाले वन्य (हरिण श्रादि ) और ग्राम्य ( कुक्कुर ) आदि उत्पन्न डाए।
ह-सर्वात्मक पुरुषके होमसे युक्त उस यज्ञसे ऋक और साम उत्पन्न हुए । उससे गायत्री श्रादि छन्द उत्पन्न हुए और उसीसे यजुः की भी उत्पत्ति हुई।
१५-उस यज्ञसे अश्व और अन्य नीचे-ऊपर दाँतों वाले पशु उत्पन्न हुए । गौ, अज और मेष भी उत्पन्न हुए। ----११-जोविराद पुरुप उत्पन्न किए गये. वह कितने प्रकारों से उत्पन्न किये गये? इनके मुख, दो हाथ, दो उरू और दो चरण कौन हुए।
१२--इनका मुख ब्राह्मण हुश्रा, दोनों बाहुओंसे क्षत्रिय बनाया गया, दोनों जरुओं ( जघनों) से वैश्य हुश्रा और पैरोंसे शुद्र उत्पन्न हुआ। . १३–पुरुषके मनसे चन्द्रमा. नेत्रसे सूर्य, मुखसे इन्द्र और अग्नि तथा प्राणसे वायु उत्पन्न हुए।
१४-पुरुषकी नाभिसे अन्तरिक्ष, शिरसे चौ ( स्वर्ग) चरयों से भूमि श्रोत्रसे दिशाएँ आदि बनाये गये।
१५-प्रजापतिके प्राणादि-रूप देवोंने मानसिक यमके सम्पादन-कालमें जिस समय पुरुषरूप पशुको बाँधा उस समय सात परिधियाँ (ऐष्टिक और श्राइवनीयकी तीन और उत्तर वेदीकी सीन वेदियाँ नथा एक आदित्य वेदी आदि सात परिधियाँ वा सात छन्द ) बनायीं गयीं और इक्कीस ( बारह माल. पाँच ऋतुएँ तीन लोक और आदित्य ) ग्रहीय काष्ट वा समिधाएँ बनायीं गई ।
१६-देवोंने यज्ञ (मानसिक-संकल्प) के द्वारा जो यज्ञ किया घा पुरुषका पूजन किया, उससे जगत रूप विकारोंके धारक और