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1 २७० ) . श्री हीरेन्ननाथदत्तने बेदान्त रहस्यमें इस कोशका वर्णन निम्न प्रकार किया है।
ब्रह्मपुर देह को पुर कहते हैं और पुरमें रहने से देही जीवको पुरुष कहने हैं।
पुरिवमति शेते वा पुरुषः गीताने नवद्वारपुरदही' श्लोकम. देहरूपपुरमें देहीके रहनेका उल्लेख किया है। देहरूप पुरके-आँखें, क.न, मुँह, प्रभृति नव दरवाजे हैं । इसीसे जानिन्दने का .....
नवद्वारे पुरे देही हंसो लेलायते वहिः । श्वेत ३२१८
जीव रूप इस इस नवद्वार के पुरमें क्रीड़ा करता है ब्रह्मरन्ध और नाभिरल्धू को कहीं देह-पुरका ग्यारहयाँ दरवाजा कहा गया है।
पुरमेकादशद्वारं अजस्यावक्रचेतसः । कठ० १११
केवल मनुष्य रूप जीत्रके रहनेका घर ही पुर नहीं है, बल्कि पशु, पक्षी कीट, पतंग सब प्रकारके जीवोंकी देहको पुर कहा गया है।
पुरश्चके द्विपदः पुरश्चके चतुष्पदः । पुरः स पक्षी भूत्वा पुरुः पुरुष आविशत् ॥
वहः २.५१% ब्रह्मने द्विग्न पुर अनाया और उसने पक्षी बन कर पुरमें प्रवेश किया। पुरुषका अर्थ है नर-नारी। पक्षी, इतर प्राणियों