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कोशे विलसत् तडित्प्रभम् (भागवत) पद्मकोश प्रतीकाशं सुविरश्वाप्यधोमुखम् । हृदयं तद्विजानीयात् विश्वस्यायतनं महत् ॥
ब्रह्मोपनिषद् ४०
हृत्पुण्डरीकं विरजं विशुद्धं विचिन्त्यमध्ये विशदं विश कम् | कैवल्य १०५
पवकोश प्रतीकाशं हृद्यं चाप्यधोमुखम् । नारायण १२/१ ततो रक्तोत्पलाभासं पुरुषायवनं महत् । दहरं पुण्डरीकं दद्वेदान्तेषु निगद्यते । चुरिका १०
उस पद्मat freefफस्ट लोग Auric bady कहते हैं । यही जीवका चरमकोश है।
हिरगमये परे कोशे विरजं ब्रह्म निष्कलम् ।
साधारण जीवोंके जिन पाँच कोषों का उल्लेख पाया जाता हैअन्नमय, प्राणमय, मनोमय विज्ञानमय और आनन्दमय वह कोष उनके भीतर भी है। इसीसे इसे परकोष कहा गया है। यह ज्योतिर्मय विद्युतकी भांति चमकीला है। इसीलिये इसे हिरण्मय कहा गया है। इस कोशको लक्ष्य करके नारायण उपनिषद् ने इस है
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प्रकार क
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नीलतोयस मध्यस्था विद्युल्लेखेव मास्वरा । नीघारशुकवत् मन्त्री पीता भास्वस्यनूपमा !! यह कोश बहुत ही सूक्ष्म, नये उपजे धानके अगले भागकी