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एक एव त्रिधास्मृतः
अर्थात् एक ही आत्मा की ये (बहिष्प्रज्ञः श्रन्तः प्रज्ञः और प्रज्ञानघन ) तीन अवस्थायें कही गई हैं। अभिप्राय यह है कि. 'ॐ शब्द भी आत्माका ही वाचक है. ईश्वरका नहीं। बहिष्प्रज्ञो विभुर्विश्वयन्तः प्रज्ञस्तु तेजसः । धन प्रस्तथा प्राज्ञ एक एव त्रिधा स्मृतः ॥
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अर्थात - विभु विश्व वहिः प्रज्ञ है, तेजस् अन्त प्रज्ञ है. तथा प्रज्ञ घन प्रज्ञ है, प्रज्ञान घन है. इसी प्रकार एक ही आत्मा तीन प्रकारसे कहा गया है। यहाँ भी ॐ की मात्राएँ हैं। अभिप्राय यह है कि जहाँ कहा गया था कि-
ओमित्येतदक्षरमिदं सर्वम् । १ । १
उसके आगे ही कहा गया कि
सर्व होत ब्रह्म प्रयमात्मा ब्रह्म 1 सोऽयमात्मा चतुष्पाद् || मा० | १ | २
अर्थात् यह सब ब्रह्म है और यह आत्मा भी ब्रह्म है. और
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यह चतुष्पाद है। तथा च उसी आत्माका वर्णन द्वारा किया है. ॐकी तीन मात्राएँ हैं. उन तोन मात्राओं से आत्माकी अवस्थाओं का कथन है । उसीकी तीन अवस्थायें हैं।
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वह्निः प्रज्ञ, अन्तप्रज्ञ तथा घन प्रज्ञ ।
इसीको जैन परिभाषा में बहिरात्मा, अन्तरात्मा व परमात्मा कहा गया है। तथा वेदान्तकी परिभाषाओं में जीव. ईश्वर एवं ब्रह्म कहते हैं।
अतः यहाँ परमात्मा. अर्थात मुक्तात्माका कथन है
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