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{ २४८ ) • सारा संसार फिर धना)। इसी लिये कहते हैं कि वेद सारे संसार का आधार है। इसी प्रकार फिर प्रजापति नाममे परमात्माका वर्णन है। प्रजापतिर्वाऽइदमग्रऽआसीत् । एक एव सोऽकामयत ।
(श०६।१।३ । १ ।।) अर्थात्-प्रजापति परमात्मा ही इस (विकृति रूप संसार बनने से ) पहले था। एक ही (वह था) उसने कामना की।
श०७ । ४ । १ १ १६-२०॥ में इसी प्रजापति परमात्माको मन्त्र की व्याख्या करते हुए हिराम नामसे स्मरस किया है।
फिर अन्यत्र भी शतपथमें लिखा हैप्रजापतिह बइदमग्रऽएक एचास | स ऐक्षत । २।२।४ाहा
अर्थात-प्रजापति परमात्मा ही इस (जगत् बननेसे पहले एक ही था ) उसने ( प्रकृतिमें ) ईक्षण किया।
न चै प्रजापति सवनैराप्तुमर्हत्येमधेवैन माप्नोति नर्चमन्वाह न यजुर्वदति न वे प्रजापति वाचाप्तुमर्हति मनसेचैन मामोति । का० सं० २६ । ६ |
अर्थात्-प्रजापति - परमात्माको सवनोंसे प्राप्त नहीं कर सकता । एक ही प्रकारसे इसे प्राप्त करता है। ऋचा इसको नहीं काहता, यजु भी नहीं बोलता। प्रजापतिको वाणीसे भी प्राप्त नहीं कर सकता । मनसे ही उसे प्राप्त करता है। यह निःसन्देह परमात्माका यणन ही है। क्योंकि उपनिषदोंमें भी ऐसा ही लिखा है
मनसेवेदमाप्तव्यम् । कठ० उप० ४ । ११ । अर्थान--मनसे ही यह (ब्रह्म) प्राप्त करना चाहिये।