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तथा सू० ४५ के मन्त्र २ में भी ३३ देवोंका उल्लेख है । एवंये देवासी दिव्येकादशस्थ पृथिव्यैकादशस्थ । अप्सुचितो महिनैकादशस्थ ते देवासो यज्ञमिमं जुपध्वम् । ऋ० १ । १३६ । ११
यहाँ, पृथिवी, अन्तरिक्ष और स्वर्ग स्यारह ग्यारह देवता बताये गये हैं। अतः तीनों लोकोंके तेतीस देवता माने गये हैं।
इसी प्रकार तैत्तरीय संहिता (१|४|१|१०) में उपरोक्त प्रकारसे ही तीनों लोकोंके ११-११ देवता माने गये हैं । तथा ऐतरेय ब्रह्म २२८ मे ११ प्रयाज, ११ अनुयाज, और १५ उपयाज इस प्रकार ३३ देवता माने हैं। ये असोमप देव हैं। तथा ३३ सोमप माने गये हैं।
त्रिशद् वै सर्वा देवताः । कौ० ८ । ६ ।
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तथा च तां ब्राह्मण ( ६ । १।५ ) में तेतीस देवताओं में ही प्रजापति गिना गया है। यहाँ, आठ वसु, ग्यारह रुद्र, वारह आदित्य, और प्रजापति और वषटकारको मिलाकर ३३ देव पूरे किये गये हैं ।
इसी प्रकार ऐतरेयमें भी
त्रयस्त्रि शद् - अष्टवसवः, एकादशरुद्राः, द्वादशादित्याः प्रजापतिथ वपट कारव । २ । १८ । ३७ ।
तथा गोपथ में बाकू और स्वरको मिलाकर ३३की गणना पूरी की गई हैं।
वाग् द्वात्रिंशी स्वरस्त्रयत्रिंशद् । गो० ३ । २ । १३ । अभिप्राय यह है कि वैदिक साहित्य में ३३ देवताओंका