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स वा एष महान आत्मा योऽयं विज्ञानमयः प्राणेषु यएषोऽन्त दय श्राकाशस्वस्पिच्छेते ० ॥
( बृहदारण्य उप० ४ २ २२ )
"यह विज्ञान मय पुरुष आत्मा प्राणों ( और इन्द्रियों) से विज्ञान प्राप्त कर हृदयके अन्दर के आकाशमें रहता है, तब उसको गाढ निद्रा होती है. उस समय प्राण, वाणी, चक्षु, ओत्र आदि वहाँ ही उसके साथ रहते हैं।
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इन विचारों से स्पष्ट हो रहा है, कि जीवात्मा के रहने का स्थान यह हृदयाकाश है, उसमें यह रहता है. इसी का नाम " खं" है । श्रव यजुर्वेद का मन्त्र पाठकों को स्पष्ट हुआ होगा, और उनको पता लगा होगा कि "ओं खं ब्रह्म' ये तीनों शब्द जीवात्मा के विषय में देह में किस प्रकार घटते हैं। जब यह ज्ञान ठीक ठीक होगा, तब अपने आत्मा की शक्ति का ज्ञान भी होगा, और उस शर्कि के विकाश का मार्ग खुल जायगा। वैदिक अध्यात्मविद्या" से यही लाभ है। यह विद्या अपनी आत्मिक शक्ति का विकाश करने का सीधा मार्ग बतलाती है और अपने अन्दर जो गुल शक्तियां गुप्त रूप से हैं. उनका भी सत्य ज्ञान प्रकट करती है ।
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ॐ सुख
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शब्द इस रीति से "आत्मा" किंवा जीवात्माका अधिक है । और यही आत्मा अमृत प्रिय सुखमय व आनन्दमय है. इसी लिये वेदमें "श्रमान् श्रमास:" ये शब्द कि जिनके अन्दर "ॐ" है, सुख विशेषके ही बाचक है, देखिये