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ॐ खं ब्रह्म । ( यजु० अ०.४० | १७)
"ॐ शब्दसे वाच्य (वं.) श्राकाशरूप (ब्रह्म) जानपूर्ण ब्रह्म है।" किं वा यहाँ ॐ शब्दका रक्षक" अर्थ भी हो सकता है। अर्थात "रक्षक प्रकाश रूप ज्ञानपूर्ण ब्रह्म" है । यहाँ का ॐ शब्द और ब्रह्म शब्द भी परमात्मा वाचक और साथ • जीवात्मा थाचक होने में कोई शंका नहीं है । संपूर्ण ईशोपनिषद् दानोंका वर्णन कर रहा है. और यहाँ ये तीनों शब्द दानाक बाचक है। सकते हैं। ब्रह्म शब्द पर और अपरब्रह्म' नामसे प्रश्नोपनिषद में प्रयुक्त होनेसे जीवात्मा-परमात्माका दर्शक निःसंदेह है । इसके अतिरिक्त "ब्रह्म' शब्दका मूल अर्थ "ज्ञान" है। वेद मंत्रों में प्रायः यह "ब्रह्मा" शब्द झान अर्थ में भी आता है । ज्ञान और चित एक ही गुण है। जीवात्मा परमात्माका स्वरूप ज्ञानरूप किंवा चिद्रूप सुप्रसिद्ध है। जाड़ प्रकृतिके आत्मतत्वका जो भेद है. वह इसी कारण है, इसलिये ज्ञान रूप होनेके कारण ब्रह्म शदवका अर्थ जीवात्मा निःसंदेह है। इस प्रकार "ॐ और अम" शब्दोंका अर्थ जीवात्म परक हुश्रा, अब रहा "खं" शब्द यह 'आकाश" पाचक है।
'ख' (आकाश)
अयं वाव स योऽयमन्तः पुरुष आकाशः ॥ ८॥ अयं वाव स योऽय मन्तहदय आकाशस्तदेतत्पूर्ण है।
(छांदोग्य उप० ३।१२)