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( २० )
(१) श्रमानं शंयोर्भमकाय सूनवेत्रिधातुशर्मवहतं शुभस्पती ।
(ऋ० ११३४ । ६) (२) तथा - ओमानमा पोमानुषीरमृक्तं धाततो काय तनयाथ शंयोः (ऋ० ६ |५०/७ )
(३) गोवा
(ऋ० ११३७)
(१) "हे ( शुभस्पती ) कल्याण के स्वामियो ! ( शं योः ) शांति से पूर्ण और (ओमान) रक्षक सुखसे युक्त (विधालु शर्म) + कफ, पित्त, वातकी समतासे उत्पन्न होने वाला कल्याण मेरे पुत्रके लिये ( बहुतं ) ला दीजिये ।"
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यह मंत्र "अश्विनौ” देवता का है, और अध्यात्म में अश्विनौ का स्थान नासिका है. क्योंकि ये दो देव श्रास और उच्छ वास ही हैं । यहाँ यह मन्त्र योग्य प्राणायाम द्वारा उत्तम आरोग्य प्राप्ति के यौगिक प्रयोगका सूचक है, और उसके सूचक शब्द "श्रीमान, त्रिधातुशर्म" ये हैं।"
क्योंकि माण्डूक्योपनिषद् में लिखा है कि
सोऽयमात्मा चतुष्पाद् | १ । १
अर्थात् - यह आत्मा चार पाव ( अवस्था ) वाला है। तथा ॐ की तीन मात्राओं का कथन करते हुए लिखा है कि
* वास्तव में यहां त्रिधातुका, अर्थ, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक चारित्ररूप रत्नत्रय है ।
यह लेख पं० सातवलेकरजी रचित वैदिक श्रध्यात्म विद्या के आधार से लिखा है ।