________________
( ०३४ )
(३) इन दोनों के मिश्रण से 'हैताद्वैत' आदि अनेक सम्प्रदाय प्रचलित हुए। ये संघ अवैदिक है। ये लोग अपनी पुष्टि में पुरुष सूक्त आदि वैदिक सूक्तोंका प्रमाण देते हैं। अतः अथ उन्हीं सूतीका विवेचन किया जायेगा, ताकि पाठकगण सत्यासत्य का निर्णय कर सकें 1
ॐकार स्वरूप
हम वैदिक देवता प्रकरण में यह सिद्ध कर चुके हैं.. कि - वैदिक rain एक भी देव ऐसा नहीं है। जिसको वर्तमान ईश्वरका रूप दिया जा सके। वेदोंमें एकेश्वरवाद के स्थान पर अनेक देवता बाद है। तथा वे सब देव पूर्व समय में भौतिक ही थे। पुनः उन नामों से मुक्तात्माओं व महात्माओं एवं राजाओं तथा विद्वानोंका भी वर्णन होने लगा. परन्तु वैदिक समय में मानुषी बुद्धिने ईश्वरकी रचना नहीं की थी। यह सब सिद्ध होने पर भी अनेक विद्वानोंका कथन है कि वैदिक साहित्य में 'ॐ' शब्द ईश्वरका ही वाचक है। श्री स्वा० दयानन्दजीने भी सत्यार्थ प्रकाशमें इस शब्दकी ईश्वर परकी ही व्याख्या की है। तथा इसको ईश्वरका मुख्यनाम माना है । अतः आवश्यक है कि वैदिक साहित्य में 'ॐ' शब्द से किस वस्तुका महरा होता है. यह जाना जाये ।
ओम् (ॐ) किंवा ओंकार
"यह शब्द " अ + उ + म्” इन तीन अक्षरोंसे बनता है, इनका अर्थ मांडूक्य-उपनिषद् में निम्न प्रकार दिया है
इसीको 'पॉलीथीज़म' ( बहुदेववाद ) कहते हैं । प्रत्येक जातिमें प्रथम इसी का प्रचार होता है, तत्पश्चात् 'मॉनोथीज़म' (एकेश्वरवाद) का आविष्कार होता है।