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। २३२ ) तथा मनुस्मृति में भी लिग्या है कि
आदित्याजायते वृधिवृष्टरन्न ततः प्रजाः ॥
अर्थन-- यज्ञ से वर्षा हाती है और वर्षा से अन्न उत्पन्न होता है और अन्न से प्रजा उत्पन्न होती है। सूर्य से वर्षा होती है, वर्षा में अन्न उत्पन्न होना है, और अन्न से प्रजा उत्पन्न होती है। इस प्रकार से अन्न का प्रजापतित्व बताया गया है। यहां यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि जो नित्य प्रति खाया जाता है, अर्थान गेहूं. चावल आदि अन्न को ही प्रजापति व ब्रह्म
आदि कहा गया है । यदि इस पर भी किसी को संशय रह जाये सो उसका कर्तव्य है कि वह लेतरीयोपनिषद् के जार का का अध्ययन करें।
तथा च प्रश्नोपनिषद में स्पष्ट लिखा है कि
अन्न प्रजापति स्ततो ह वै ततस्तस्मादिमाः प्रजाः प्रजायन्त इति ।।१।१४ ॥
अर्थात-अन्न ही प्रजापति है, उसी से यह वीर्य होता है । उस वीयं से हो यह सम्पूर्ण प्रजा उत्पन्न होती है। इससे यह सिद्ध हा गया कि इसी जो, चावल आदि अन्न कोही प्रजापति कहते हैं। अभिप्राय यह है कि-वैदिक साहित्य में इसी प्रकार गाय. बैल, घोड़ा, ऊखल, मूसल, अग्नि, जल, रथ; आदि सम्पूर्ण पदार्थों की स्तुति की गई है। उस समय इन सबको ईश्वर नहीं माना जाता था. और न ईश्वर की शक्तियां ही।
याज्ञिक आदि मत अभिप्राय यह है, कि वैदिक समय में देवता विषयक चार मत मुख्य थे।