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। २३१ । देव या इन्द्र ने वृत्र की सन्धियों काट कर मका वध किया था।
इस प्रकार से यहां इन्द्र आदि देवा को अश्न के आधीन बताया गया है । इससे यह भी सिद्ध होता है, कि इन्द्र आदि देवता मनुष्य ही थे तथा अन्न से ही उनमें शक्ति का संचार. होता था।
यही नहीं अपितु अन्न को साक्षात प्रल भी कहा गया है--- अन्न बाति व्प जानात् अन्नं हि भूतानां ज्येष्ठम् ॥ अन्नं न निन्यात् ।।
ये तैतिरीयोपनिषद की श्रतियां हैं। इनमें स्पष्टरूप ने अन्नका ब्रह्म व सबका उत्पादक बनाया गया है । तथाच ब्राह्मण ग्रन्थों में अन्न के विषय में लिया है कि--
अन्न प्रजापतिः । श. ५। १ । ३ । ७ यत्तदन्नमेष स विष्णुदेवता । श० ७ । ५। १ । २१ अन्न व पूषा । कौ० १२ । ८ अन्न व कम् । ऐ० ६ । २१ ! . तदन्न बैं विश्वं प्राणोमित्रम् । जै० ३०१६ । ३ । अन्न व श्रीविंसद् । गो० पू० ५।४
अर्थात् अन्न ही प्रजापति है। अन्न ही विना देवता है। अन्न ही पूषा देवता है। अन्न ही मुख है । और अन्नही विश्व प्राणारूप मित्र है । तथा अम्न ही श्री है और अन्न ही विराट पुरुष है । गीता में लिखा है कि
यज्ञाद् भवति पर्जन्यः पर्जन्यादन्न संभवः । अम्बाई भवन्ति भूतानि गीता, ३ । ४ ॥