________________
सजाने का ही वर्णन है । इसी प्रकार "अग्नि के रथ पर बैठकर देवगण श्राते हैं" इत्यादि कथन भी उन जलूसों का वर्णन है, जो जस समय मूर्तियों के निकाले जाने थे।
उपरोक्त कथन की पुष्टि निम्न मन्त्र से होती है ।
महेवन स्वामद्रिवः पराशुभकाय देयाम् । न सहस्राय नायुताय वनियो न शवाय शतामघ॥
. ऋग्वेद मं० ८।१ । ५ ।। . अर्थात् 'हे इन्द्र ! तुझे मैं बड़े मूल्य पर भी नहीं बचगा। सौ, सहन्न और दस हजार मिलने पर भा में तुझ नहीं बेचूंगा। इस मन्त्र का भाष्य करते हुये श्री सायनाचार्यजी ने लिखा है कि...
'महे महते शुल्काय मूल्याय न परा देयाम् न विक्रीणामि ।'
यहाँ 'परा दा' धातु का अर्थ बेचना है।
ऋ० ४ । २४ । १० । में लिस्बा है, कि दस गाये देकर मेरा यह इन्द्र कौन खरीदेगा ! तथा वृत्रकी सेना को मारने के पश्चान मेरे इन्द्र को लोटा दे।
(क मं दशभिर्ममेह क्रीणाति धेनुभिः । यदा त्राणि जंघनदथैन भेषनर्ददत् ) - इस प्रमाणसे सिद्ध है कि, यदि समयमें रामलीला की तरह इन्द्रलीला भी होती थी, और उसमें वृत्र सुधा उसकी सेना को मारा जाता था। उस लीला के लिए इन्द्र आदि की प्रतिमाये किराये पर लाई जाती थीं।