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• भा : इसका तात्पर्य पूर्वोक्त पनि पदानेसे स्पष्ट हो जाता है।
प्राचीन समयमें कई यज्ञ सैकड़ों वर्ष चलते थे, और उसमें रेवतीफे • बहश्यसे जो अन्न दान होता था इसका कोई हिसाब ही नहीं
था। ये मन जैसे देवतोंके लिये अन्न दान करने के लिये रखे थे। उसी प्रकार भारतीय आर्योके आपसकी संगठना करने के लिये भी
परन्तु इसका विचार किसी अन्य प्रसंगमें किया जावेगा । यहाँ देव जातिके सबंधकी ही बात हमें देखनी है. अतः भन्यं मातका : यहाँ विचार करना उचिस भी नहीं है। : इस सब वर्णनसे पाठकाक मनम. यह बात जम गई होगी, :: कि मारा धो इस दिशाम विश्वास या निविष्टपमें : "देष” नामक मनुष्य जाती रहती थी और वह जाति भारतीय .श्रायं जातिकी मित्र जाति थी, तथा यह मित्रता दोनों मित्र
जातियों-- अथर्थात् देवों और प्रायों का हित बढ़ाने के लिये . कारण हुई थी। :
असुर भाषामें देव शब्द का अर्थ । . .. हमने पहिले ही बताया है कि देवोंके राष्ट्रके पश्चिम और उत्तर दिशामें असुरों और राक्षसोंके देश थे। इसलिये हमें पता लगाना चाहिये कि उनकी भाषाओं में "देव" शब्मका अर्थ क्या है। अनुरोंकी भाषा मेंद है इस भाषामें देव शब्दका अर्थ 'राक्षस' ही है। ऋर, दुष्ट, विनाशक, हत्या करने वाला इस अर्थमें देव शब्द असुर भाषामें है। घरशियन भाषामें, उर्दू अर्थान् असुर भाषासे उत्पन्न हुई अन्यान्य भाषाओं में भी देव शबइका अर्थ राक्षस ही है। .
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. . इसका तात्पर्य समझने के लिए बड़ी दूर आनेकी आवश्यकता नहीं है । जिस प्रकार अंसुर और राक्षम देवोंके. राष्ट्र पर हमला करते थे और दिन रात देवोंको सताते थे, ठीक उसी प्रकार इन्द्र