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'वैदिक-स्वर्ग'
art शीर्ष बृहदस्य पृष्ठं वामदेव्यमुदरमोदनस्य । दांमि पक्षों मुखमस्य सत्यं विधारी जातस्य योधि यज्ञः ।। १ ।।.
इसे श्रोदनका सिर है, व्रत इसकी पीठ है. वामदेव्य उदर है. बन्द दोनों पक्ष (पास) हैं. सत्य इसका मुख हैं विहारी यज्ञ, तपसे उत्पन्न हुआ
है ।
भाग्य - बृहन और वामय साम विशेष है. सायरण ब्रह्मसे रथन्तर साम और सत्यसे सत्य-सामसे अभिप्राय लेता है। अनस्थाः पूताः पवनेन शुद्धाः शुचयः शुचिमपि यन्ति लोकम् | पां शिश्नं प्रदति जातवेदाः स्वर्गे लोके बहु स्त्रैण मेषाम् || २ ||
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डियरहित हुए निर्मल हुए. पवित्र करने वाले से पचित्र किये हुए चमकते हुए ( नाशिक ) चमकते हुए लोककी ओर जाते हैं जातवेदा ( श्रमि) उनके शिश्नको नहीं जलाता हैं स्वर्गलोक में बहुत स्त्री समूह उनका होता है।
भाष्य - हड़ियोंसे रहित अर्थात जो इन सब यहाँको करते हैं मरने के अनन्तर उनको दिव्य शरीर मिलता है। ये हड़ियों आदि वाला भौतिक शरीर नहीं। जब भौतिक शरीर ही नहीं, तो शिश्न आदि भी अलंकार रूपमें बीत जानने चाहिये - इत्यादि ।
विष्टारिणमोदनं ये पचन्ति नैनान वतिः सचते कदाचन । आस्ते यम उपयाति देवान् गन्धर्वैर्मदते सोम्येभिः | ३ | जो विद्वान पकाते हैं. उनको अजीविका ( दरिद्रता ) कभी नहीं पटती (पेसा पुरुष ) यसके पास बैठता है. देवांकी