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नत्सदश क्रियाए कही गई हैं। कुछ यज्ञ जाद सरीखे ही हैं । कम मे कम उममें जार के अवशोष तो हैं ही। वर्षा, शत्रुनाश-समृद्धि, रोग-निवारण, गर्भधारण, सन्तान, पशु लाभ आदि फलोंकी प्राप्तिक लिथे यज्ञ और होम बतलाये गये हैं। अभिचार नामक यज्ञ, अथवा कम सब वेदों में कहे गये हैं । गर्भाधान, पुन्सवन
आदि संस्कारोंके मूल स्वरूप एक प्रकारके जादृ ही हैं जादू यानी साधना । इष्ट सिद्धिके लिये अथवा अनिष्ट-निवारण के लिये विशिष्ट वस्तु विशिष्ट क्रिया अथवा विशिष्ट मंत्रों का उनमें अद्भुत शन्ति. है. इस कल्पनासे विशिष्ट परिस्थितिम उपयोग करना साधना है। पहिले एक ऐसा समय था, जब कि लोग वनस्पति. धातु या क्षार
आदि भौनिक द्रव्योंके रोग-निवारण गुणांको नहीं जानत थे । कार्य-कारण-भावसे अजान थे, तब वद्यकीय-क्रियाएँ तक जा श्रीं । अथर्ववेद और गृह्य-सूत्रों के कई रोग-निवारक कम इसीतर छ. के हैं । जादकी वनस्पतियाँ और मंत्र उनमें बतलाय है।
निसर्ग-बस्तु-गजा हिन्दू धर्म की दूसरी प्राथमिक रिश्रति का अवशेष है. पापागा, पर्वत. नदी. इन. पशु पक्षी, नार आदि निसर्ग की वस्तुओं में कुछ चमत्कारिणी शक्ति है. इस विश्वास से यह पूजा प्रारम्भ होती है । गंडकी नदी के काल. शक्ति ग्राम नर्मदाके ताम्र बटोगटे अनेको छिद्र वाली लम्ब गोल-कोमल गांगाटी, पहाड़. गंगा. यमुना कृष्णपा और सिन्धु श्रादि नदियाँ ऊमर, पीपल. बड़. चेल. तुलसी. आँवला श्रादि वनस्पतियों; वल गाय. अन्दर, महिष. मछली. कछुआ. बराह. सिंह बाघ बाड़ा, हाथी. नाग. गरुड़, हंस. मगर आदि पशु-पक्षी; सूर्य. चंद्र मंगल आदि आकाशस्थ गोल. अग्र-वायु वर्मा आदि निसर्ग घटनाएं; इन सबकी पूंजा करनेकी पद्धती हिन्न-धर्म में है। शालिग्राम नर्मदाके गोटे अथवा लम्ब-गोल-गांगोटीकी पूजा, विष्णु,