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( २२८ ) न क्षुत्पिपासे न ग्लानिर्न शीतोष्णभयं तथा ।
अमृत नामक तेजसद्रव्यके पानद्वारा उनके शरीर अपनी आयु पर्यन्त अजर और अमर बने रहते हैं। स्वर्गलोकके अन्यान्य भोज्य पदार्थ भी अमृतके समान तैजस ही है।
मनुष्योंके पलक लगते हैं, देवताओंके नहीं। मनुष्य भूमिको स्पर्श करके खड़े होते है, देवता इस प्रकार खड़े नहीं हात । मनुष्य की छाया पड़ती है, देवताकी नहीं। मनुष्यके शरीर और वस्त्रोंपर धूल लग जाती है. देवताके शरीर और वस्त्र नीरज ही रहते हैं। मनुष्य के शरीरकी माला मुरझाती रहती है, देवताके शरीरसे सम्पृक्त माला खिली रहती है। महाभारतमें लिखा है, कि दमयन्ती मनुष्य और देवताओंके लक्षण्यसे परिचित थी। जब उसने नल और इन्द्रादिम वधम्य देखा तो उसने नलके स्वरूपका . निश्चय हो जाने पर उसीके गले में जयमाला डाल दी
.. : "TT सापश्यद् वियुधान् सर्वानस्वेदान् स्तब्धलौचनान् । हृषितम्रग्रजोहीनान् वितानस्पृशतः क्षितिम् ।। छायाद्वितीयो जाननग्रजःस्वेदसमन्धितः । भूमिष्ठो नेपयश्चैव निमेषेण च सूचितः ॥
(महाभारत) इसी प्रकार ब्रोहिद्रौणिकपर्वमें देव-शरीर-विषयक उल्लेख है कि
न च स्वेदो न दोर्गन्ध्यं पुरीष मूत्रमेव च । तेषां न च रजो वस्त्र बाधते तर चे सुने ।।