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अंगिराके पुत्र सुधन्या. और सुधन्वाके पुत्र ऋभु, विभु ओर वाज ये तीन थे। इन में से ऋभु बड़े कारीगर थे इस लिये उन की कारीगरीके काग, काले देवों में शामित किया गया था। क्षेत्र नामक जातिका-एक दिग्विजयी राष्ट्र था, उस राष्ट्र में मानव जाती के लोगों को घसनेका अधिकार नहीं था। कभी कभी अावश्यकता पड़ने पर कई मानव जातिके लोगोंको उसमें जाकर बसनेका अधिकार मिलता था. इसी तरह ऋभुओंको मिला था । ऋभु उत्सम कारीगर | उत्तम रथ बनाते थे. उत्तम शस्त्र बनाते थे, गौओंका अधिक दूध देने वाली बनाते थे . वृद्धाको जवान बनाने की औषध योजनाये जानने थे देव जातिके लिये ऐसे कुशल कारीगरोंकी अावश्यकत थी अतः प्रजापति ने उन ऋभुको अपनी देव जाति में लेनेका यत्न किया। प्रथम देवोंने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया परन्तु पश्चान् प्रजापतिका प्रस्ताव देवोंने मान लिया और ऋतुओंकी गाना देवों में होने लगी।
आज कल अमरिकामें भारत वासियों का स्थायी रूपसे रहने की शाज्ञा नहीं है । पर अब इस युद्धके कारण भारतीयों को आज्ञा देनेका विचार वहां करने लगा हैं। इसी तरह यह ऋगुओं की बात दीख रही है।
देव लोक "इस विष्टिय (तिच्यत; में अर्थात स्वर्गलाको देव रहत थे। प्राय: ' लाक" शब्द संस्कृतमें 'देश' कि या राम वाचक है. इससे यह अर्थ बनता है कि 'देवलाक' शन देवीका देश अथवा देवीका राष्ट्र इम अथ ही प्रयुक्त होता है। 'देवराशन संस्कृत में भी है। तथा महाराष्ट्रमें 'देवराष्ट्र नामकी