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होता है. इसमें (७ × ७) -- ४६ सेनिक और (७x २ ) - १४ पार्श्व रक्षक मिलकर ६३ वीर होते हैं इनका नाम शर्ध हैं ।
आत (६३- × ७) -- ४४२ सैनिकका एक बात कहलाता है। ३ गण - (६३ × १४) = ८८ सैनिकोका अथवा १४ तांका एक गण कहलाता है ।
४ - महाराण (६३.६३) २०६६ सेनियोंका महाराण कहलाता है। इस प्रकार सातोंके विविधि अनुपातों में इनके अनेक छोटे-मोटे सैनिक विभाग हैं इस ही महाराण मंडल आदि अनेक विभागोंके नाम हैं।.
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शस्त्रास्त्र
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इनके शस्त्रास्त्रये हैं। ऋष्टि-भाला वाशी कुल्हाड़ी, ये शस्त्र गणवेश भी सबका समान ही रहता है । अन्यत्र अन्य शस्त्रों का भी वर्णन है। तलवार, वत्र आदि ये भी यतते थे और लोहे के शिरकाण भी वर्तते थे ।
बल
मरुतोंका बल संघ के कारण हैं। समूहमें रहना, समूह में जाना, समूह से कीड़ा करना । आदिके कारण जो इनका संगठन है उसका यह बल हैं। इस मंत्र का आशय ऐका से है
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ऋषि से कहता है कि मरुतोंके काव्योंका गान करो. क्योंकि उनका बल संघ से उत्पन्न हुआ है। तथा ये आपस में भी लड़ते नहीं, रथोंमें बैठकर वीरताको प्रकट करते हैं।
अर्थात इनके काव्योंका गान करने से मानयों में सगठनका बल बढ़ेगा। खेलों में रुचि बढ़ने की वृत्ति श्रानन्दयुक्त बनेगी ।