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८-इनके हमलों के समय भूमि भी कांप उठती है और मरियल बालकके समान सभी भय-भीत होते हैं।
इनका जन्म स्थान मुस्थिर है, पर ये दूर दूर जाकर हमले करनेकी तैयारी में दौड़ते हैं। जिस प्रकार पक्षीके छोटे छोटे बच्चे भक्ष्य के लिये दूर जाते हैं, तो भी अपनी माताके ऊपर उनका ध्यान रहता है। वैसे ही ये वीर भी दूर हमलेके लिए गम ता भी मातृभूमि पर उनका ध्यान रहता ही है। ....... ये बड़े वक्ता है ये अपने पराक्रम में अपनी पराकाष्ठा करते हैं, जिस तरह घुटने पानीमें गायें घूमती हैं. इसी तरह सर्वत्र ये बार भी धूमते हैं और पराक्रम करते रहते हैं।
११--ये यायुरूप बड़े भारी घोड़ोंको तितर-बितर कर देते हैं वैसे ही ये धीर शत्रु कितना ही प्रथल हुश्रा उसको भी उखाड़ फेंकते हैं।
१. जो बल इनका शत्रुओको हटाता है. वह बल पर्वतों को भी लाँघता है।
१३-ये वीर जब कता में मार्ग पर चनते हैं, तब आपसमें इतनी छोटी आवाज में बोलते हैं. कि उस समय कोई तीसरा इनके शब्द सुन नहीं सकता। दो वीर श्रापसमें बात करने लगे तो तीसरा सुन नहीं सकता है।
ऋग्वेदका सुत्रोध, भाग्य, भाग ५ पृ. १५
इन्द्र देवता के गुण (१) बी.-वळ धारण करने वाला। . (२) हिरण्ययः-सुधक श्राभूषण धारण करने वाला। (३) ग्रः- शूरवीर, बड़ा प्रसापी वीर ।