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(३) ( उपर्बुधः ) उपः काल में जागने वाले, उषः कालमें उठकर अपना कार्य शुरू करने वाले।
(४) (हाता) हवन करने वाला, देवताओंको बुलाने वाला।
(५) ( मनुर्हितः ) मनुष्योंका हित करने वाला। जनताका हित करने में तत्पर ।
(६) ( ऋतावृधः ) सत्यमार्गके बढ़ाने वाले। (७)(पत्नीघ्रतः) गृहस्थाश्रमी । *
देवों के कार्य तृतीय मन्त्रमें कुछ देवों के नाम गिनाये हैं। 'इन्द्र,शत्रुका नाश करने वाला । ( वायुः) गतिमान , प्रगति करने वाला, (बृहस्पतिः) झानी वक्ता, ( मित्रः) हित करता । ( अग्निः ) प्रकाश देने वाला, मार्गदर्शक, (पूषा ) पोपण करने वाला। (भगः ) ऐश्वर्यवान् । (श्रादित्याः) लेने वाला धारणकर्ता । (मारुतोगणः) संघसे रहने वाला। . .
मनुष्योंको इन गुणों को अपनाना चाहिये। जिससे उनमें देवत्यका विकास होगा।" .
ऋग्वेदका सुबोध भाष्य, भाग २ पृ०२१ उपरोक्त लेखसे स्पष्ट है कि श्रेष्ठ कर्म करने वाले मनुष्य विशेष ही 'देव' कहलाते हैं।
अश्विनौ देवों के गुण "यहां दोनों अश्वि देवोंका वर्णन है। (१) अश्वोंका घोड़ोंका पालन करने में ये चतुर थे। * उपरोक्त गुणोंसे भी देवता उत्तम मनुष्य ही सिद्ध होते हैं।