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अर्थात्---यह जलोंको घेर कर रहता था इसलिये इसको "बरण'कहते थे । घरको देवाने परोक्षरूपसे वरुण कहा, क्योंकि देवता परोक्ष प्रिय होते हैं, और प्रत्यक्षसे घृणा करते हैं। यहाँ भी पानीसे घिरे हुये स्थलको वरुणाका स्थान बताया गया है। तथा च यहाँ परुषका वास्तविक नाम "वरण" कहा है। श्रीक लोगोंक यहाँ भी इसको "वरण" एवं, 'उरानोस' कहा है। वे लोग इस देवताको सत्र देवीका पिसा मानते हैं । शक्खर (सिन्ध) में सिन्धुनदी के किनारे अति प्राचीन एक 'वरना पीरको कत्र है. यह जल का पीर माना जाता है । इस मकवर में अनेक जल जन्तुओंके चिन्न हैं. जिनका यह पीर मालिक है । अतः सिद्ध है के इस वरना पीर चमण देवता ही है।
... मरुत देवोंका गण - मरुत (मर x उत) मरने तक उठकर लड़ने वाले बड़े भारी वीर हैं। ये संमुदायसे रहते हैं, 1 सब मिलकर एक ही बड़े घरमें रहते हैं, साथ साथ शत्रु पर हमला करते हैं. राबंकी पोषाक एक जैसी रहती है । खान पान समान होता है, सबके पास शस्त्रास्त्र समान रहते हैं, इनकी कतार साताको मिलाकर एक होती है। प्रत्येक कतारके सोनों और दो वीर रहते हैं. इनको पार्श्व-रक्षक अर्थात् दोनों बाजुश्रोसे होने वाले हमलोको बचाने वाला वीर कहते है। इस तरह १४७ x १x६ नौ वीरों की एक तार होती है, ऐसी इनकी ७ कतारें होती है, अर्थात ७ कतारों में मिलकर (x)-६३ सैनिक होते हैं. इनकी संख्याके अनुसार संघ के नाम होते हैं। . .
संघ बीरीका एक एक पंक्तिके.२ पार्श्व-रक्षक मिलकर वीर छुये (१ x x १६ x ७. कला-६३ धीरोंका एक शधं
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