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( १८ ) .. अर्थात इसी समाजस उत्पन्न हुआ यह नेता. जनताका अगुश्रा है। (सूर्येण यतते) सूर्य के साथ यत्न करता है, जैसे सूर्य निरलस रह कर सबको प्रकाश देता है. वैसे ही यह नेता बालस्य छोड़फर उन्नतिके कार्य में दत्तचित्त रहता है।
ऋग्वेदका मुबांध WITJ. महा १० वैश्वानरो महिम्ना विश्वकृष्टिभरद्वाजेषु यजतोचिभावा ।।
___ऋ० १ । ५६ १७॥ अर्थात-अपनी महिमा ( अपने महत्वसे ) ही वैश्वानर सन्य मनुष्यों के अधिपति हैं। — इस मन्वका भाष्य करने हुए श्री सायनाचार्य लिखते हैं कि
विश्वकृष्टि, कृष्टिरिति मनुष्यनाम । विश्चे मर्चे मनुष्याः यस्य स्वभूताः स तथोक्तः । __ अधात कृष्टि मनुष्य वाचक शब्द है। सब मनुष्य जिसके लिये अपने ही निज होते हैं वह विश्वकृष्टि है।
तथा स्वामी दयानन्दर्जा लिखते हैं कि
चैश्वानरः सर्वनेता । विश्वष्टिः विश्वाः माः कृष्टीमनुध्यादिकाः प्रजाः ।।
अर्थान . वैश्वानर सबका नेता है। विश्वकृष्ट सब प्रजात्राका संघ है।
सारांश यह है कि यह वैश्वानर अनि. राणानि है। प्रथा इसीका नाम संघशक्ति है।
इसी राष्ट्रानिका वर्णन "पुरुप सूक्त में पुरुष नामसे किया है।
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